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Tuesday, December 5, 2023

बिहार के जातिगत जनगणना के आंकड़ों से,मोदी सरकार की 2024 की राह हुई मुश्किल

विपक्षी गठबंधन इंडिया ने 2024 के आम चुनाव से पहले भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए के सामने बड़ा दांव चल दिया है। दरअसल बिहार की नीतीश सरकार ने राज्य में जातिगत जनगणना को गांधी जयंती के दिन सार्वजनिक किया जिसको लेकर विपक्ष के कई नेताओं ने स्वागत किया है तो वही बीजेपी नेताओं ने रिपोर्ट की समीक्षा करने की बात कही है जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को लेकर भाजपा नही विरोध में है और नही खुल कर समर्थन कर रही,वही बिहार सरकार ने अपनी जाति गणना जारी की है, जो वोट बैंक के रूप में ओबीसी और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के राजनीतिक महत्व को रेखांकित करती है, यह सामान्य वर्ग के चुनावी मूल्य को भी कमजोर करता है, जिसमें तथाकथित ऊंची जातियां शामिल हैं। बदले में, निष्कर्षों में 2024 के चुनावों के लिए राजनीतिक कथानक को बदलने का संकेत है।

ओबीसी और ईबीसी 63%

प्रकाशित आंकड़ों से पता चला है कि राज्य की 13.07 करोड़ की कुल आबादी में ओबीसी और ईबीसी की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है, जिसमें से अत्यंत पिछड़ा वर्ग सबसे बड़ा सामाजिक वर्ग है, इसके बाद अन्य पिछड़ा वर्ग 27.13 प्रतिशत है। सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि यादव, ओबीसी समूह जिससे उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव आते हैं, जनसंख्या के मामले में सबसे बड़े हैं, जो कुल का 14.27 प्रतिशत है। दलित, जिन्हें अनुसूचित जाति भी कहा जाता है, राज्य की कुल आबादी का 19.65 प्रतिशत हैं, जिसमें अनुसूचित जनजाति के लगभग 22 लाख लोग भी रहते हैं।

मुसलमानो की आबादी 17.8%

वही रिपोर्ट में बताया गया की राज्य में अल्पसंख्यक आबादी खास कर मुस्लिमो की आबादी 17.8% है,इस आंकड़े के बाद मुस्लिमो के भीतर भी अपने हिस्से को लेकर आवाजे उठेंगी वही आरजेडी को एमवाय समीकरण से भी फायदा हो सकता है जहा ओबीसी आबादी में यादवों की जनसंख्या 14% है

अनारक्षित सामान्य वर्ग से संबंधित लोग, जो 1990 के दशक की मंडल लहर तक राजनीति में वर्चस्व रखने वाली लौकिक उच्च जातियों को दर्शाते हैं, उनकी आबादी 15.52 प्रतिशत है। सर्वेक्षण यह भी स्थापित करता है कि राज्य की आबादी में भारी संख्या में हिंदू हैं, जिसमें बहुसंख्यक समुदाय 81.99 प्रतिशत है, उसके बाद मुस्लिम 17.7 प्रतिशत हैं।

ईसाई, सिख, जैन और अन्य धर्मों का पालन करने वालों के साथ-साथ अविश्वासियों की भी बहुत कम उपस्थिति है, जो कुल मिलाकर आबादी का एक प्रतिशत से भी कम है। जाति सर्वेक्षण निश्चित रूप से विभिन्न क्षेत्रों में अपनी आनुपातिक हिस्सेदारी की मांग करने वाले ओबीसी के साथ एक भानुमती का पिटारा खोलेगा,सबसे ज्यादा परेशान ऊंची जातियां होंगी जो आबादी में छोटी अल्पसंख्यक हैं। अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ओबीसी को भड़काने के लिए चुनाव में इन आंकड़ों को कैसे उछालते हैं, खासकर तब जब कांग्रेस भी इस मामले में उनके पक्ष में है।

वही बिहार की जाती जनगणना का असर पूरे देश में देखने को मिलेगा,कुछ ही महीनों में कई राज्यों के विधानसभा चुनाव है जिसमे जातिगत जनगणना हावी रह सकती है, क्योंकि कांग्रेस ने भी जाति आधारित राजनीति के पिच पर उतरने का मन बना लिया है जहा कांग्रेस नेता राहुल गांधी कई मौकों पर ओबीसी को अपनी और आकर्षित करने के लिए बयान दिए व अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी जातिगत जनगणना करने की बात कही है,वही बिहार सरकार ने कहा यह जाति जनगणना नहीं बल्कि जाति सर्वेक्षण है जो मंगलवार दोपहर को पटना में जारी किया गया इसका छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में आगामी चुनावी लड़ाई पर असर पड़ने की उम्मीद है। इसका व्यापक प्रभाव अगले साल आम चुनावों में महसूस किया जा सकता है, जहां विपक्षी गठबंधन द्वारा वादा किया गया जाति जनगणना एक निर्णायक मुद्दा होने की संभावना है। चूंकि मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस बात पर जोर दिया कि केंद्र अकेले ही जाति जनगणना कर सकता है, इसलिए नीतीश कुमार सरकार ने इसे एक सर्वेक्षण कहा।

बहरहाल, उन्होंने ऐसे निष्कर्ष निकाले हैं जिनसे पता चलता है कि निचली जातियों को आबादी में उनके प्रतिशत के अनुपात में लाभ नहीं मिल रहा है। जाति सर्वेक्षण के आंकड़ों की घोषणा से एक ओर जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल के सत्तारूढ़ गठबंधन और दूसरी ओर विपक्षी भाजपा के बीच तीखी नोकझोंक शुरू हो गई।

जबकि जद-यू नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके सहयोगी और राजद के संरक्षक लालू प्रसाद ने रिपोर्ट के प्रकाशन को ऐतिहासिक बताया, वहीं भाजपा के नेताओं ने इसे धोखाधड़ी करार दिया। चूंकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी बड़े पैमाने पर जाति के मुद्दे का समर्थन कर रहे हैं, इसलिए भाजपा का शीर्ष नेतृत्व हतप्रभ है और उसे नहीं पता कि इस कदम का मुकाबला कैसे किया जाए। यह मुद्दा आने वाले चुनावी मुकाबले पर किस तरह असर डालने वाला है, इसका संकेत इस बात से लगाया जा सकता है कि पीएम मोदी हर सार्वजनिक सभा में जाति पर जोर दे रहे हैं।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि रिपोर्ट का प्रकाशन गांधी जयंती के दिन हुआ है और सर्वेक्षण टीम को उनके काम के लिए बधाई दी। आगे क्या होगा, इस पर उन्होंने कहा कि बिहार विधानसभा में नौ राजनीतिक दलों की एक बैठक जल्द ही बुलाई जाएगी, जिन्होंने सर्वेक्षण के समर्थन में सर्वसम्मति से मतदान किया था और उन्हें सर्वेक्षण के निष्कर्षों के बारे में सूचित किया जाएगा।

बिहार में भाजपा उन नौ पार्टियों में शामिल थी, जिन्होंने जाति सर्वेक्षण का समर्थन किया था। पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ने भी सर्वेक्षण रिपोर्ट के प्रकाशन का स्वागत किया और कहा कि भाजपा की साजिशों और कानूनी बाधाओं के बावजूद यह अभ्यास पूरा हो गया है। उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, ये आंकड़े वंचित और उत्पीड़ित वर्गों और गरीबों को उनकी आबादी के अनुसार प्रतिनिधित्व देने में देश के लिए एक मानक स्थापित करेंगे और उनके विकास के लिए नीतियां बनाने में मदद करेंगे।

लालू प्रसाद ने कहा, केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि समाज के सभी वर्गों को उनकी संख्या के अनुसार विकास में हिस्सेदारी मिले। राजद नेता ने कहा, जब हम 2024 में सरकार बनाएंगे तो हम जाति जनगणना कराएंगे, राजद नेता, जो विपक्ष के भारतीय गुट के प्रमुख चेहरों में से एक हैं, जो अगले साल आम चुनाव में भाजपा को टक्कर देने की योजना बना रहे हैं। राज्य भाजपा प्रमुख सम्राट चौधरी ने कहा कि पार्टी रिपोर्ट का विस्तार से अध्ययन करेगी और फिर अपनी राय साझा करेगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि भाजपा ने सर्वेक्षण का दृढ़ता से समर्थन किया है।

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